“आकुलता”- गीत
कहाँ प्यार का ताना-बाना,
कहँँ अद्भुत वह रीत।
कहाँ श्याम सा त्याग, जगत मेँ,
कहँ राधा सी प्रीत।
कहाँ प्रेम का निश्छल झरना,
कहँ अप्रतिम सँगीत।
कहाँ दिखे अब सरिता निर्मल,
सागर भी है ढीठ।
भ्रमर देखता राह निरन्तर,
खिले कली नवनीत।
मोर दिखे आकुल क्यों, हर पल,
करूँ नृत्य अभिनीत।
व्योम कहे वसुधा से,
हो ना जाऊँ कहीँ अतीत।
“आशा” घटती प्रियतम के उर,
जाए उमर न बीत।
कुछ तो रक्खो लाज प्रेम की,
देखो ऊँच न नीच।
क्या रक्खा रिश्ते-नातों मेँ,
आन मिलो मनमीत..!
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