आकाशवाणी रामपुर के साथ संबंध*
अतीत की यादें
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आकाशवाणी रामपुर के साथ संबंध
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आकाशवाणी रामपुर से मेरा पहला संपर्क तब हुआ, जब जुलाई 1983 में मेरे विवाह के पश्चात मेरा और मेरी पत्नी श्रीमती मंजुल रानी का इंटरव्यू लेने के लिए आकाशवाणी रामपुर ने हमें आमंत्रित किया। आकाशवाणी परिसर में श्री मौहम्मद अली मौज ने हमारा स्वागत किया । यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात थी । मौहम्मद अली मौज न केवल आकाशवाणी के उच्च पद पर आसीन थे ,अपितु एक अच्छे शायर भी थे । व्यवहार में विनम्रता उनका गुण था। इंटरव्यू एक अन्य महिला ने लिया था। आकाशवाणी रामपुर हमारे दहेज रहित विवाह से प्रसन्न था और इस विषय को व्यापक प्रचार – प्रसार तथा धन्यवाद देने का इच्छुक था ।
फिर उसके बाद आकाशवाणी से मेरे कार्यक्रम बराबर आने लगे । 1984 के आसपास मुझे आकाशवाणी पर एक काव्य गोष्ठी का संचालन करने का अवसर मिला। उसमें एक सज्जन मुरादाबाद से भी आए थे। उन्होंने गोष्ठी आरंभ होने से पहले ही मुझसे कह दिया कि मैं उनके नाम के आगे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अवश्य जोड़ दूँ। मुझे कोई आपत्ति भी नजर नहीं आई ।जब गोष्ठी आरंभ हुई तब उन्होंने फिर मुझे याद दिलाया और उनके नाम को पुकारने से पहले मैंने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहकर पुकारा ।
आकाशवाणी से हास्य व्यंग्य लेख, जीवनी , विचार प्रधान लेख ,हल्के फुल्के विषय के साथ-साथ अनेक परिचर्चाओं में भी मैंने भागीदारी की है तथा उनका संचालन भी किया है।
एक बार मुरादाबाद निवासी साहित्यकार श्री जयपाल सिंह व्यस्त जी , जो बाद में विधान परिषद के सदस्य भी बने, हमारी परिचर्चा के मध्य उपस्थित थे ।अन्य लोगों को आने में कुछ देर थी । अतः केंद्र निदेशक महोदय के कक्ष में बैठकर हम अनौपचारिक बातचीत करने लगे । उस समय शादियों का मौसम चल रहा था। जयपाल सिंह व्यस्त जी ने अपनी जेब से एक पर्चा निकाला और मुझे दिखाते हुए कहा ” प्रतिदिन 7 – 8 शादियों में आना- जाना हो रहा है । जितने निमंत्रण आते हैं , मैं सभी में जाने का प्रयास करता हूँ।” उनकी यह बात वास्तव में उनकी सामाजिकता से भरी हुई दिनचर्या को रेखांकित करती थी,जिसका वास्तव में समाज में रहते हुए बड़ा भारी महत्व रहता है ।
एक बार मेरे पास आकाशवाणी से फोन आया “कल आपकी मौलाना मौहम्मद अली जौहर के संबंध में एक वार्ता होनी है ।” मैंने तुरंत उत्तर दिया “मैं विवाद में नहीं पड़ना चाहता ।अतः आलेख तैयार नहीं कर पाऊँगा । “उधर से आवाज आई ” मंदीप कौर जी ने मुझे जो आदेश दिया था ,वह मैंने आप तक पहुंचा दिया । अब मंदीप कौर जी चली गई हैं । आपको जो भी कहना है, आप उनसे ही कहिए। मैं भी अब जा रही हूँ।” इतना कहने के बाद उधर से फोन रख दिया गया और मैंने भी इससे पहले ही “अच्छा” कह दिया । अब स्थिति यह थी कि मेरी “मनाही” रिकॉर्ड में नहीं आई थी। मेरे पास मंदीप कौर जी का फोन नंबर भी नहीं था । फिर मैंने रात में बैठकर लेख तैयार किया और अगले दिन 11:00 बजे लेख हाथ में लेकर आकाशवाणी पहुँच गया । मैंने मंदीप कौर जी से कहा “यह लेख पढ़ लीजिए “। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा “रवि जी ! आपके लेख का क्या पढ़ना?” मैंने कहा “नहीं ,मेरा आग्रह है कि आप इस पर एक नजर जरूर डालें।” वह बात को समझ गईं। उन्होंने मेरे कहने पर वह लेख पढ़ा और कहा “यह बिल्कुल सही लिखा है आपने ।” मैंने उन्हें धन्यवाद कहा। और फिर वह लगभग 10 मिनट की एक वार्ता के रूप में प्रसारित हुआ। मैंने निष्पक्ष रुप से ,जो मुझे लिखना चाहिए था वह ,इस लेख में लिखा था ।
जब रामपुर आकाशवाणी के 50 वर्ष पूरे हुए ,तब सादगी के साथ आकाशवाणी परिवार ने अपना उत्सव मनाया और उसमें मुझे भी विशेष रूप से आमंत्रित करके एक स्मृति चिन्ह भेंट किया था । आकाशवाणी रामपुर के संबंध में मुझे दो शब्द कहने का भी अवसर मिला। वह स्मृति चिन्ह तथा आकाशवाणी परिवार के साथ ग्रुप फोटो मेरे जीवन की एक अमूल्य यादगार है।
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रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451