आकर मेरे ख्वाबों में, पर वे कहते कुछ नहीं
आकर मेरे ख्वाबों में,पर वे कहते कुछ नहीं।
नींद उड़ाकर ले जाते है,हम कहते कुछ नही।।
सारी उमरिया बीत गई,अब करे क्या हम।
दो चार घड़ी के लिए आते,करते कुछ नही।।
मर मर के जी रहे हम,उनके इंतजार में।
लुटाया सब कुछ मैने,पर देते मुझे कुछ नहीं।।
वफ़ा करते रहे सदा हम,वे बेवफा ही रहे।
ऊपर वाला भी उनको सज़ा देता कुछ नही।।
कैसे कटेगी ये जिंदगी ये समझ में नहीं आता।
समझाती हूं हर तरह से,वे समझते कुछ नहीं।।
छोड़ कर जा रही हूं दुनिया,मेरा आखरी वक्त है।।
कहने को तो बहुत कुछ है ,पर कहती कुछ नही।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम