आकर्षण का सिद्धांत!
“यह कविता मेरे “”आकर्षण के सिद्धांत””( law of Attraction) पर बहुत दिनों से”
किये जा रहे लघुशोध को काव्यरूप देने का छोटा सा प्रयास है
जिसे मैंने जिज्ञासाओं के माध्यम से व्यक्त किया है
यदि हम इसे जिंदगी में समझ गए तो
न केवल हमारी सोच का दायरा बढ़ेगा बरन
जिंदगी जीने के ढंग में भी अद्भुत बदलाव होगा …..
जो बातें कही नहीं जातीं ,
बो बातें कहीं नहीं जातीं
अन्तर्मन के द्वारे द्वारे
गूंजती धरा,न ठहर पातीं
कंपित हो कम्पन स्वरूपा वो
ब्रह्माण्ड की सैर,हेतु निकल जातीं
स्पंदित हो चलते चलते
अन्तर्मनस्क तक पहुँच जातीं
सभी कहते सुनते लिखते पढ़ते
जैसी सोच हो वैसा बन जाते
होता प्रति पल प्रति प्रति के साथ
अति गूढ़ , सरलता से समझ नहीं पाते
कोई याद करे यदि हम हो दूर
होता क्यों हाथ खुजाते हम
आभाषित हो उसके प्रति
क्यों फोन उसी को लगाते हम
बात करें उसकी और वो हो दूर
क्यों होता ऐसा तुम होते चूर
होता समक्ष तुम्हारे वो
ऐसा कैसे जैसें हो वो हूर
कहते सौ बर्ष उम्र तुम्हारी है
कैसे आये तुम थे सुदूर
जब खुश हो तुम चित्त हो प्रसन्न
हर दुष्कर कार्य में सफलता पाते हो
जब हो निराश अस्थिर हो चित्त
सरलतम यत्न में असफल हो जाते हो
उठो सोचो ‘दीप’ ऐसा क्योँ होता है
सकल विश्व में, एक प्रतिशत ही,
अपना जीवन सफल बनाते हैं
जारी…….(विचारणीय)
-कुल’दीप’ मिश्रा
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