आओ हम सपने देखें
आओ हम सपने देखें, इसमें कुछ खर्च न आता।
बड़े से बड़ा सपना भी, बिन मोल दिए मिल जाता।।
सपने चरितार्थ करें हम, अपनी कोशिश के बूते।
हम चलते रहें निरन्तर, हों भले न पग में जूते।।
संचित यत्नों से खोलें, हम सिद्धि बैंक में खाता।
बड़े से बड़ा सपना भी, बिन मोल दिए मिल जाता।।
अनवरत यत्न से सम्भव, होगा बैलेंस बढ़ाना।
फिर दूर नहीं वह मंजिल, सर्वोच्च शिखर छू पाना।।
ज्यों ज्यों पग आगे बढ़ते, आनन्द न हृदय समाता।
बड़े से बड़ा सपना भी, बिन मोल दिए मिल जाता।।
सर्वोच्च शिखर छूते ही, हम पूर्णकाम हो जाते।
बैलेंस नहीं घटता फिर, हम युगदृष्टा कहलाते।।
हम अपने को पहचानें, यह सम्भव तब हो पाता।
बड़े से बड़ा सपना भी, बिन मोल दिए मिल जाता।।
संदेश यही जन-जन को, कवि कलम उठाकर देता।
हम सभी शिखर छू सकते, बन नवयुग के नचिकेता।।
नौ निधियां उसकी चेरी, जो समय न व्यर्थ बिताता।
बड़े से बड़ा सपना भी, बिन मोल दिए मिल जाता।।
यदि सपने बहुत बड़े हैं, तो तुम्हें न सोने देंगे ।
तुमसे निशिवासर उद्यम, अविरल अकूत श्रम लेंगे।।
हाॅं, स्वप्न फलित होंगे तब, रवि-शशि भी माथ नवाता।
बड़े से बड़ा सपना भी, बिन मोल दिए मिल जाता।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी