आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें
आओ सूर्य तुम्हारा हम स्वागत करें।
तुम मेरे अस्तित्व को अपना कण दिया करो।
हम अभी लुहार की भट्टी में तप रहे हैं।
निहाई पर फिर पीटे जाएंगे।
मुझे आदमी बनना है।
मुझे मेरे वास्तविक दाम में निलामी पर चढ़ना है।
एक-एक पायदान चढ़ते हुए जिंदगी से उतरना है।
आओ सूर्य तुम मेरे साथ रहो।
मेरे पूरे दिनों में मेरा नाथ रहो।
मुझे सारा पराजित-युद्ध जीतना है।
मेरे अस्तित्व को जीवित होकर बीतना है।
तुम मुझे उज्जवल रौशनी देते रहो।
तुम्हारे रौशनी का मैं हथियार गढ़ सकूँ।
तुम्हारी छवि से युक्त पताका चोटियों पर गड़ सकूँ।
आओ सूर्य तुम मेरे भाल पर चमको।
जब मैं कहूँ मेरे चेहरे पर आ धमको।
हर अंधे को रास्ता बाँट सकूँ।
भटक गयी हर राह को गाँठ सकूँ।
अपने शैशव से अपना बुढ़ापा देख सकूँ।
हर रास्ते पर तुम्हारे कदम उरेक सकूँ।
तुम्हारी रश्मियों से हर दु:ख सेंक सकूँ।
आओ सूर्य अपनी कथा और सुना व्यथा जाओ।
कहानी स्वयं के जीवन, मरण की सुना तथा जाओ।
कहते हैं तुम एक समय मर जाओगे।
सृष्टि को भी अनाथ कर जाओगे।
हाइड्रोजन को हीलियम होना बंद कर लोगे।
गुरुत्व बल से लड़ते-लड़ते साँसें चंद कर लोगे।
फटोगे गुब्बारे की भांति और स्वयं को ध्वंस कर लोगे।
सूर्य हमारे पास आओ।
हारे हुए हमसे, जीवन की आश पाओ।
ऊर्जा खत्म होती है।
प्राण के कण बचे रहते हैं।
असीम प्रक्रियाओं से गुजर, फिर शायद सूर्य बनो
या पहाड़,पत्थर।
आदमी भी या जानवर।
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अरुण कुमार प्रसाद,26/6/22