आओ रोपें एक तरू हम
आओ रोपें एक तरू हम
अपनी प्यारी सुता के नाम
सींचें उसको नेह नीर से
आएगा वह सभी के काम ।
नेह नीर से सिंचित तरुवर
बेटी जैसी चिन्ता करते ,
ताप घना है सहकर भी वे
शीतल छाया देते रहते ।
हर संताप बंजर धरा का
स्वच्छ बयार हर पल बहाते ,
खिला सुमन आँचल में अपने
महक जगत में हैं बिखराते ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी सम्भल