आओ फिर जिंदा होते हैं..
कुछ सपने जो मरे हुए हैं।
या भीतर से डरे हुए हैं।
उनमें नई सांस बोते हैं।
आओ! फिर जिंदा होते हैं।
समय गवाही देता सबकी।
कर्म सदा आगे आते हैं।
जो दुख दर्द से हार मानते,
टूटन,चोट,घुटन पाते हैं।
कोई ऐसे भी न टूटे!
खिले रहें सारे गुल – बूटे!
ज़हरीले सर्पों से लिपटे,
हम चंदन का वन होते हैं।
आओ ! फिर जिंदा होते हैं।