आओ पितरों का स्मरण करें
आओ पितरों का स्मरण करें
विदा हुए जो इस संसार से
देकर स्नेह आशीष हमें
उनके लिए तर्पण करें
न आएंगे लौटकर
फिर कभी वे
देते थे जो प्रेम पोषण
दुलार हमें
उसे फिर से जीवित करें।
करके कुछ कार्य उनकी स्मृति में
फिर समर्पित करें
आये है इन सोलह दिनों को
लोक अपना छोड़कर वे
देकर कुछ अंश दान उनकी
आत्मा को संतुष्ट करें।
छूट न जाए कोई अभिलाषा
अपूर्ण उनकी यही संकल्प करें।
देकर जलांजलि अपनी अंजुनी से
उनकी क्षुधा को पूर्ण करें
करके श्राद्धकर्म तिथि को उनकी
आशीर्वाद ग्रहण करें।
लौट जाएंगे फिर धाम अपने वो
करके सेवा हम नियम विधान से
उनको नमन करें।।
“कविता चौहान”
स्वरचित