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9 Feb 2024 · 1 min read

आओ न! बचपन की छुट्टी मनाएं

आओ न! बचपन की छुट्टी मनाएं—-
पेडों के छांव-छांव,
कौवे की कांव-कांव,
घरों से गुपचुप,
हम नंगे पाँव-पाँव।।

कुछ कागज के टुकड़े,
बगल में दबाकर,
एक बेधारी कैंची,
हाथ छिपा कर,
प्लैन – पेज का प्लेन ,
हवा में उड़ाकर,
बनाने नाव का,
ख्वाब सजाकर।।

माचिस की डिब्बी,
टेलीफोन – छोटा,
धागा बना तार ,
टॉकिंग का खेला,
डाॅटपेन खाली ,
गुलेल हमारी,
बकैना गोली भर,
बनते प्रहारी।।

नुकीले कंपास से,
ढेले को ठेले,
हम ही थे कारीगर,
बिगाड़े, खेलें,
कुछ और खेल के ,
हमारे खिलौने।।

चौडे – से पत्तों की,
थी छतरी हमारी ,
कांटेदार झाडी से,
झगडा सदा ही,
झूलती डाली को,
बनाकर झूला,
हा… हैस्या मस्ती की,
वही रेलगाडी ।।

खाकर बच्चे,
फल – फूल कच्चे ,
कूप का पानी,
शहद स्वाद जानी,
कड़ी धूप में भी,
डटे , न मानें ,
घूम – घाम, सरपट,
खेलें , मजे से।।

मिला, मन – मौजी,
सूखा – रेत ,पानी
मचाते निरंतर,
हिरन-कूद तूफानी,
पत्थर , माटी,
रेत का टीला,
हवा सुहानी ,
रेतीला पानी।।

सरकते बादल ,
झम-झम बरसो !
पतनालों से झरते,
बारिश कणों को,
सिर थाप झेंले ,
बन हम शंभो!
गङ्गाधर उपमा ,
स्वयं लिख जाएं
आओ न! बचपन की छुट्टी मनाएं।।

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