आओ थोड़े बुद्ध बन जाएँ
ख़त्म हो जाएँगे सारे युद्ध ,
ग़र जगा लें हम अपने अंदर बुद्ध ।
हीरे -जवाहरात ,महल -ताक़त ,रोब – शानोशौकत,
घोड़े -हाथी -ज़मीन ,ताज -तख़्त -शासन ,
होता इनके कारण युद्ध,इन्हें त्यागही,महान बने थे बुद्ध।
अ मानव ! ऐसा भी न कर उजाड़,
कि ख़ुद का आशियाना भी ले बिगाड़ ।
ख़ूबसूरत थी ये दुनिया,जब उस दुनिया से थे आए,
आने वालों को भी भाए, ऐसी इसे छोड़ जाएँ ।
इंसानों को नहीं , लालच को उड़ाएँ बारूद से,
भयमुक्त बनाएँ जग को आओ अपने प्रेम से ।
मोह – माया त्याग कर ,मिटा आंतरिक द्वंद्व ,
आओ हम सब हो जाएँ थोड़े बुद्ध ।
बिन करें विलंब,आओ जान लें युद्ध के ख़ौफ़नाक सबब।
मानवता सबसे बड़ा मज़हब,आओ रहें मिलजुल बन एक कुटुम्ब।
जग कल्याण की रखें सोच मिटाकर मतभेद ,
कर्म न करें कोई भी ऐसा जिसपर हो हमें खेद ।
दफ़नाकर नफ़रतों की बारूद ,आओ भरें सबमें नई उम्मीद ।
है बस यही मुराद ,जीवन सबका हो जाए आबाद ।
आशावाद से भरे हों संवाद,उभरे न बीच हमारे विवाद।
रहे सबको ज़िम्मेदारी का बोध,
अंधा न करे किसी को प्रतिशोध ।
चुनें हम सच की राह ,हो न कोई कभी गुमराह ।
कर विचारों को शुद्ध,आओ हम थोड़े बन जाएँ बुद्ध।
इंदु नांदल विश्व रिकॉर्ड होल्डर
इंडोनेशिया
स्वरचित