आओ टेसू
आओ टेसू, होली फिर से,
तुम्हें बुलाती है।
रंग-बिरंगा गरल हवा में,
श्वास-श्वास मटमैली।
चीर गँवाया मर्यादा ने,
भाषा हुई विषैली।
अम्मा गाकर गीत पुराने,
काम चलाती है।
आओ टेसू, होली फिर से,
तुम्हें बुलाती है।
मिल-जुल कर पकवान बनाती,
तब थीं चाची-ताई।
आज निरंकुश हो कर बढ़ती,
सम्बंधों में खाई।
अब बाहर से आकर महरी,
सूप डुलाती है।
आओ टेसू, होली फिर से,
तुम्हें बुलाती है।
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– राजीव ‘प्रखर’
मुरादाबाद (उ० प्र०)