आओ घर चलें
अब शाम हो चली है
आओ घर चलें
सुनसान हर गली है
आओ घर चलें…
(१)
भौंरे के कानों में
कोई प्रेम गीत
गुनगुना रही कली है
आओ घर चलें…
(२)
कितनी खुशनसीब
वह जोड़ी जो इस
खुली वादी में पली है
आओ घर चलें…
(३)
किसी बुलबुल की
तान है यह
या मिसरी की डली है
आओ घर चलें…
(४)
इन पेड़-पौधों की
डाली-डाली पर
कोई तमन्ना फली है
आओ घर चलें…
(५)
गुमसुम बैठी हुई
वह हिरनी शायद
एक दिल की जली है
आओ घर चलें…
(६)
यह तिलस्मी कायनात
मालूम नहीं
किस सांचे में ढली है
आओ घर चलें…
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Shekhar Chandra Mitra
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