“आए हैं ऋतुराज”
वासन्ती चूनर पहन,
रखे धरा क्यों राज़ l
“आशा” बाँधे, मिलन की,
सज-धज, करती नाज़।l
टेसू सँग गुलबाँस भी,
दिखता है जाँबाज़ l
चित्रकार को ज्यों मिली,
मनचाही परवाज़।l
मन को मोहें तितलियाँ,
किस पर गिरनी गाज l
भ्रमर-वृन्द, गुँजार पर,
करतीं, कलियाँ लाज।l
व्योम सँदेसा दे रहा,
भले न कुछ आवाज़ l
इन्द्रधनुष भी कर रहा,
सतरंगी आग़ाज़।।
कोई कितना भी बने,
ख़ुद मेँ तीरन्दाज़ l
किंतु कहाँ, कब, है दिखा,
प्रभु सा कारन्दाज़।l
मोर, नृत्य से विरत क्यों,
क्या तबियत नासाज़ l
अहा, मयूरी दिख गई,
दिन वसूल, मय-ब्याज।।
नींबू से है ,आम की,
बहस ठन गई आज l
सदियों से है, प्रेम क्यूँ,
भावों का सरताज।l
विरहन उर, भी क्यों छिड़ा,
मधुर मिलन का साज़ l
पुष्प लदे, हैं मन खिले,
” आए हैं ऋतुराज “..!
परवाज़ # उड़ान, flight
नासाज़ # अस्वस्थ, unhealthy
आग़ाज़ # शुरुआत, beginning
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