आएगा एक दिन क़ज़ा बनकर।
प्यार बरसा है फिर सबा बनकर।
वो आ गया दर्द की दवा बनकर।
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बद्दुआओं को दे रहा दावत।
कैसा बागी है वो दुआ बनकर।
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इश्क की सारी नेमते है वो।
आएगा एक दिन क़ज़ा बनकर।
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आज हमदर्द हम निवाला है।
बैठेगा एक दिन खुदा बनकर।
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आज लगता है जो आज़ार मुझे।
एक दिन आएगा शिफ़ा बनकर।
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दुनिया में जितनी भी कदूरत है।
पास वो आती हैं मज़ा बनकर।
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मैं बचूं तो बचूं कहो कैसे ।
हर ज़हर आता है दवा बनकर।
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आज हूँ मौत की पनाहों में।
जिंदगी आयी थी वफ़ा बनकर।
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