आएंगे पंछी घर अपने ही सूरज को जरा ढल लेने दो
मशरूफ है वो अब
उन्हें मशरूफ रहने दो
चकाचौंध के इस जहाँ में
उनको चंद वक़्त रहने दो
आएंगे पंछी घर अपने ही
सूरज को जरा ढल लेने दो
ज़दा है कफ़स का मुसाफ़िर
उन्हें भी जरा स्वाद चख लेने दो
सुना है क़ाजी बढ़ा काबिल है
क़ाजी को चंद क़ानून पढ़ लेने दो
ख़ुमार है ‘दीप’ उन्हें भी दौलत का
अपनी औक़ात का पता चल लेने दो