आएंगे अच्छे दिन कभी
आएंगे अच्छे दिन कभी
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आँखों से काजल चुरा लें,ख़बर भी न आए।
यूँ नज़र से नज़र लगा दें,नज़र भी न आए।।
इतने पत्थर हो गए हैं,कुछ लोग आजकल,
दिल की बात कहदो चाहे,असर भी न आए।
अपनी कहें पर सुने नहीं,यूँ बुत हो जाएँ।
मतलब की बात आए तो,वो खुश हो जाएँ।
आदमी की बिसात क्या है,हम समझें कैसे?
तेज़ आँधी कब सावन की,वो रुत हो जाएँ।
नाते गए रिश्ते रह गए,ऐसा लगता है।
स्वर्ण कलश सुरा-भरा मनुज,अब तो दिखता है।।
एक सिक्के के दो पहलू,विश्वास यही है।
भले लोगों को देखूँ तो,सपना जगता है।।
आएंगे अच्छे दिन कभी,उदासी नहीं है।
परिवर्तन तो नियम है जी,तलाशी वहीं है।।
चेतना जागेगी ज़रूर,समय बलवान है।
हौसले की आँख रहती,न प्यासी कहीं है।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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