आई है दीवाली रात
जगमग दीप जल उठे मिट गया अंधकार
क्यूंकि आई है दीवाली रात
इक दीया तुम भी जलाओ राह में अपनी
दूर हो तमस दुख विलाप
सबके लिए कुछ खास एक नव प्रभात
उज्ज्वल सा देदीप्यमान आकाश
चारों ओर फैल गया सतरंगी प्रकाश
क्यूंकि आई है दीवाली रात
करके रंग रोगन साज सज्जा
चमक उठे घर द्वार
शामियाने से लग रहे हर पथ
प्रकाशमय हुए दिन रात
रोशन हो उठा गगन अनेक पटाखों से
झूम उठे नन्हे दिल भी लेकर फुलझड़ी ओर मिठाई
फैल गया कोलाहल हर सड़क गलियारों में।
व्यस्त हो उठी माता बहनें भी रसोई ओर पकवानों में
खिल उठे मुख सभी के पाकर खुशियों की सौगात
इक नव जीवन का आलोक उजास
दमक उठी अमावस की काली निशा
क्यूंकि आई है दीवाली रात।।
” कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक