आईने सा टूट जाना बन्द कर
आईने सा टूट जाना बन्द कर ।
ख्वाब ! यूँ नखरे दिखाना बन्द कर ।।
कब तलक वादों की मैयत में रहूँ ;
अब मुझे तू याद आना बन्द कर ।
ये रईसी ऐब हैं ले जा इन्हें ;
मुफ़लिसी का दिल दुखाना बन्द कर ।
हँस रही हैं देख कर तारीकियाँ ;
जुगनुओं सा टिमटिमाना बन्द कर ।
इश्क तेरी ये वफ़ादारी भी क्या ;
चार दिन यारी निभाना बन्द कर ।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’