{{{ आईना }}}
आज आईना भी हमसे शरारत कर रहा है ,
पूछता क्यों तू मुझमे उसको है ढूंढ रहा ,,
रहती है सारी शिकायते उससे तेरी ,
फिर क्यों मेरे ऊपर तेरा गुस्सा उतर रहा,,
माना के तेरा रूप मुझमे दिखता है ,
तेरी आँखों के हर आँसू से,कांच मेरा टूट रहा ,,
हर लम्हा बिताया है मैंने तेरे साथ ,
मेरे ऊपर जमी धूल को ,तू अपनी प्रतिबिंब से
हटाता रहा ,,
रहता है तू ख़ामोश , गुमसुम सा हर दम ,
अपने सारे ज़ख्म सिर्फ,मुझसे ही रु-ब-रु करता रहा,,
तेरा सच बताने का तरीका भी बड़ा अज़ीब हैं ,
जब भी सीधा कुछ दिखाओ तो , उल्टा ही मुझे
दिखता रहा,,