आईना
काँच का गढ़ा ठोस द्रव्य ,
अवलोकता सुवर्ण – सा है,
इसके सबब ही तो हम ,
देख पाते अपना आनन है,
उसी को कहते आईना है।
विनीते को औंधा अवलोकता ,
समक्ष इसके पधारने पर ,
हमारे तुल्य प्रतिच्छवि गढ़ता ,
सबकी यह द्योतक बतलाता ,
उसी को कहते आईना है।
मिथ्या करने वालों को ,
अशुर का स्वरूप अवलोकता ,
उत्कृष्ट करने वालों को ,
त्रिदश का स्वरूप अवलोकता ,
न्याय के पगडंडी पर चलता ,
उसी को कहते आईना है।
यथार्थ से प्रतिबुद्ध कराता ,
मिथ्या का सर्वमान्य करता ,
न्याय का साहचर्य गढ़ता ,
स्वयं को अवलोकन का ,
यही सुवर्ण अवसर देता,
उसी को कहते आईना है।
इसी के सबब ही तो,
जानते सभी मनुज है,
काला, सफेद, भुरा,
वह कैसा दिखते है ?
उसी को कहते आईना है।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या