“आईना”
चुप रहूँ मैं, तो वो चुप रहती है,
आँखों से वो सारी बातें कहती है..
ज़माना छोड़ दिया उसने मुझसे वफ़ा के लिए,
अब आईने में मेरी दोस्त रहती है..!
जहाँ जाऊँ उसे पाती हूँ मैं,
साया है वो मेरा, मुझसे कहती है!
हर वक़्त वो मेरे क़रीब रहती है..
आईने में मेरी दोस्त रहती है..!!
हँसती है वो मेरे मुस्कुराने पर..
मुझसे पहले वो मेरे गम सहती है !
ज़माना छोड़ दिया उसने मुझसे वफ़ा के लिए,
हाँ अब आईने में मेरी दोस्त रहती है..!!
“तनुजा डबास जून”