आईना बोला मुझसे
आईना बोला मुझसे
कहाँ गईं वो बोलती आँखें
जो घंटों बतियाती थीं मुझसे
कहाँ गई वो खिलखिलाती हंसी
जो घंटों निहारा करती थी मुझमें
कहाँ गए वो लहराते बाल
जो मेरे सामने अनेक
केश विन्यासों में सजते थे
आज क्या हुआ तुम्हें
वो सब कहाँ खो गया
क्यूँ उदास हो
जाओ फिर पहले सी हो जाओ
सजो-संवरो मुस्कुराओ
खुशियाँ बिखेरो…ज़िंदगी ही तो है…
कंचन”अद्वैता”