आईना झूठा है !
आईना झूठा है !
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जो सच-सच ना तस्वीर दिखलाता ,
गोरे चेहरे को भी मलीन कर जाता ,
पर्दें के पीछे की भी तस्वीर है लाता ,
“वो आईना झूठा है”, है सभी कहता !
आईना का काम है, सच्चाई दिखाना ,
चेहरे पे जो कुछ हो उसे सामने लाना ,
ना कुछ उसमें जोड़ना, ना ही घटाना ,
छवि किसी की सच-सच बिंबित करना !
आईने से सबको बड़ी उम्मीद बॅंधी होती ,
वास्तविक स्वरूप की जिज्ञासा बड़ी होती ,
जो सुंदर हैं, उन्हें सुंदर दिखने की चाहत होती ,
अजब-ग़ज़ब तस्वीर पाकर निराशा बड़ी होती !
आईने की नहीं किसी और के ही दोष होते ,
जो इस सच्चाई के उपकरण को गंदा करते ,
आईने की कांच पे गंदी मिट्टी तक लगा देते ,
और आईने से सही प्रतिबिंब की भी चाह रखते !
आईना क्या करे, कोई उसे बदनाम कर रहा है ,
कोई खुद को छुपाकर उसपे ही दोष मढ़ रहा है ,
और पर्दे के पीछे से सारा काम तमाम कर रहा है,
पर हर जुबां पे यही होती है कि “आईना झूठा है”!!
_ स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
__ किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : ११/०६/२०२१.
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