आईना और वक्त
गुमान हुआ एक आईने को,
मुझसा ईमानदार है न कोई
जैसा वो है, वैसे मैं बतलाऊं,
हुबहु, ना जोड़ घटाव कोई,
वक्त मुस्काता बोला,
ऐ आईने, मैं बदलूं, तो
बदल जाए फितरत उसकी
तू क्या जाने, जो बताएगा
देखकर सिर्फ सूरत उसकी
गुमान हुआ एक आईने को,
मुझसा ईमानदार है न कोई
जैसा वो है, वैसे मैं बतलाऊं,
हुबहु, ना जोड़ घटाव कोई,
वक्त मुस्काता बोला,
ऐ आईने, मैं बदलूं, तो
बदल जाए फितरत उसकी
तू क्या जाने, जो बताएगा
देखकर सिर्फ सूरत उसकी