आईना अगर तू बन जाये
आईना अगर तू बन जाये
सामने आ मैं भी संवर जाऊँ
जब भी सामने तुम्हें देखूं
मेरे सामने मैं ही दिख पाऊँ
आसूं तुझमें भी महसूस करूं
दर्द में अगर कभी रो जाऊँ
खुशी की मुस्कान हो मुंह पे
होकर रूबरू तेरे ज्यादा पाऊँ
दिल की कह ना पाया कहीं
वो तेरे को बेझिझक सुनाऊँ
तोड़ दे कोई अगर तुझे कोई
समेटते हुए जख्म मैं ही पाऊँ
हो जाओ अगर टुकड़े टुकड़े
हर टुकड़े में मैं ही नजर आऊँ
आईना अगर तू बन जाये
सामने आ मैं भी संवर जाऊँ
लक्ष्मण सिंह
जयपुर