आइये – ज़रा कल की बात करें
आइये – ज़रा कल की बात करें
वो कल जो कल गुजर गया
या वो कल जो कल आएगा ?
कुछ वाक़िये आज भी
कल की याद दिलाते हैं
वो कल का जख़्म – जो आज
नासूर है वो कल भी
होगा पट्टियों का मोहताज
हाँ – अब कल किसी का
इंतज़ार नहीं होगा
कल का गुजारा
कल ही गुजर गया
. . . . . . . अतुल “कृष्ण”