आइना समाज का
अद्भुत नजारा इस जिंदगी का समझ कोई ना पाया है,
मुंह पर मीठे बोल पीछे खंजर लेकर हर कोई यहां आया है,
स्वाभिमान और अभिमान की बात करते रहते सब यहां पर,
पर फर्क है इसमें यह कोई आज तक समझ न पाया है,
करते सब सच्ची यारी की बातें और किस्से सुनाते उसके कई,
पर क्यूं नहीं है उस यारी का वजूद अब यह समझता न कोई,
सोचकर समाज के बारे में अक्सर दबा दी जाती हैं खुशियां यहां अपनों की,
पर टूटता कहर जब दुखो का तब यही समाज न आगे आता कभी,
बेटे आठ हो या हो चार संवार देती हैं इक मां जिंदगी उनकी,
पर आ जाती जब वो उम्र के आखिरी पड़ाव पर,
तो चार बेटों से इक मां संभलती कभी नहीं,
करते हैं इश्क़ यहां तो इक सच्चे आशिक़ की ख्वाइश सब रखते हैं,
हो जाए तुमसे मिलकर किसी की ख्वाइश पूरी यह सोच कभी न रखते हैं,
ऊंचाई क्या छु ली चंद बेटियों ने खुद की शान खतरे में महसूस करते हैं,
जब होती दरिंदगी इनके साथ,
तो गलती खुद की सोच की नहीं इन्हीं की निकालते हैं,
तस्वीर यह दोहरे समाज की भयावह रूप अब ले रही,
क्यूंकि अपनी कमियां छोड़ यहां सबको दूसरों की गलतियां दिख रही।