आइए मोड़ें समय की धार को
विधा― गीतिका
आधार छंद― अनंदवर्धक (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी― गालगागा, गालगागा, गालगा.
(2122 2122 212)
सामान्त― आर
पदांत― को
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आइए मोड़ें समय की धार को।
कम करें मिलकर धरा के भार को।।1।।
देश से दंगे स्वतः गायब मिलें।
यदि पचाना सीख लें हम हार को।।2।।
दंश दे जो देश को दहला रहा।
बेड़ियों में बाँध दें गद्दार को।।3।।
जो बढ़ाता है दिलों की दूरियाँ।
तोड़ दो उस मजहबी दीवार को।।4।।
बोल यदि बिगड़ा, सुधर पाता कहाँ।
कौन मीठा कर सका है क्षार को।।5।।
छाँव में जिस पेड़ के तुम पल रहे।
काटते हो क्यों उसी के डार को।।6।।
आइए मिलकर निभाएँ बंधुता।
तोड़ दें आतंकियों के तार को।।7।।
नाच नंगा की भरे बाजार में।
सिद्ध दोषी कर रहे भरतार को।।8।।
आप मौसेरे हुए हैं चोर के।
क्या कहें हम आपके किरदार को।।9।।
ढाल बन उस दुष्ट का क्यों हो खड़े।
जो हताहत कर रहा लाचार को।।10।।