आइए चलें भीड़तंत्र से लोकतंत्र की ओर
“आइए चलें भीड़तंत्र से लोकतंत्र की ओर”
घरों में रहने वाले तो, अमूमन रोज़ ही, इन सड़कों पर निकलते हैं
कुछ मंज़िलों तक जाने के लिए, बाकी अपना काम करने के लिए
बहुत सारे लोगों की तो जीविका भी, इन्हीं रास्तों से चला करती है
हां कहींकहीं अब भीड़ जमा होने लगी है कुछ नहीं करने के लिए
सभी जानते हैं, भीड़ का अपना, कोई धर्म, मर्म या कर्म नहीं होता
कुंठाग्रस्त लोगों की भेडचाल है, चल पड़ती है चारा चरने के लिए
इन में से हर व्यक्ति को होना चाहिए, अपने परिवारजनों के पास
अपने पारिवारिक आदर्शों मूल्यों को एकबार फिर समझने के लिए
ताकि जब भी हाथ उठें, तो किसी अहम कर्तव्य की, पूर्ति हेतु उठें
और जब कदम बढ़ें तो केवल प्रगति की राह पर चलने के लिए
~ नितिन जोधपुरी “छीण”