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28 Dec 2024 · 1 min read

आंसू

मेरे नजदीक मेरे अपने!
कैसे भी चाहूँ परखने!!
बस केवल आंसू हैं मेरे!
रात्रि, दोपहर और सवेरे!!

बिलकुल समीप मेरे बाद!
बतला सकते निज स्वाद!!
आत्मस्वरूप के करीब से!
मुझ अकिंचन गरीब से!!

सर्व समर्थ मुझे कहने में!
मुझसे से ही मेरे बहने में!!
मैं आत्मस्वरूप जीव सा!
सहारा देने को संजीव सा!!

वो मेरी पीड़ा की परिभाषा!
उन्हीं से एकमात्र है आशा!!
बाकी तो सभी से दूरी है!
सबकी निज मजबूरी है!!

पीड़ा अतिरेक हो जाती है!
अविरल धार आंसू आती है!!
वो सदैव साथ मेरा निभाते!
जरुरत पर तुरंत निकल आते!!

हर दर्द में साथ निभाया है!
वो एकमात्र मेरा साया है!!
स्वार्थ में डूबे हुये सभी बाकी!
उनके काम आ सकूँ ताकि!!

जन्म,जीवन और मरण में!
कुछ चिन्मय संग मृण्मय!!
मेरे संग साथ सदैव रहते!
कभी निज पीड़ा नहीं कहते!!

शिकायत नहीं कोई मेरे प्रति!
बाकी मित्र मंडली सब डरती!!
मैं और वो अद्वैत से हैं!
दुनिया के लिये त्रैत से हैं!!

सभी भागे साथ छोडकर!
वो निकले तुरंत दौडकर!!
उन्होंने सदैव मुझे बचाया है!
हर दर्द में साथ पाया है!!

मेरे आंसू आपको धन्यवाद है!
आपसे मेरा जीवन आबाद है!!
मर जाता यदि आप न होते!
आपके बिना कैसे हम रोते!!
…….
आचार्य शीलक राम
वैदिक योगशाला
कुरुक्षेत्र

Language: Hindi
21 Views

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