” आंसा नही है आम आदमी होना “
” आसां नही है आम आदमी होना ”
आम आदमी कितना आम सा शब्द है
यही आम आदमी करता सबको निशब्द है ,
सब ख़ास अपनी ख़ास जिम्मेदारियां निभाते हैं
आम आदमी तो हम सबकी गाँठ सुलझाते हैं ,
इनके लिए तुम – मैं कोई मायने नही रखते हैं
ये तो सबको अपना ही समझ सब करते हैं ,
कितना मुश्किल है आम होकर ख़ास करना
और फिर ख़ास करके भी आम बने रहना ,
ये किसी पद – सम्मान के भूखे नही होते
ये दिल से मुलायम होते हैं रूख़े नही होते ,
इनकी मुलायमियत का मत उठाना गलत फायदा
नही तो ये तोड़ देगें फिर हर कानून – कायदा ,
ये प्रेम और सम्मान की भाषा जानते हैं
हर निराशा को भी आशा ही मानते हैं ,
यही आशा इनके आम आदमी होने की पहचान है
इसी के बल पर इनकी आन – बान और शान है ,
इस आम आदमी का बड़प्पन तो देखिए
जनाब इसके हौसले से कुछ तो सीखिए ,
हर विपत्ति में ये डट कर खड़ा रहता है
कुछ भी हो जाये ये हाथ नही छोड़ता है ,
इतने सब के बावजूद ये ख़ास नही होना चाहता है
ये आम था आम है और आम ही रहना चाहता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/09/2020 )