आंदोलन या देशद्रोह ?
तुम आंदोलन के नाम पर
देश तोड़ने निकले थे
लाल किले पर चढ़ कर
तिरंगा रौंदने निकले थे ?
जब जो मन चाहा बोला
सबको गलत बोल ललकारा
तुम्हारी ही करतूतों से अब
तुम्हारा खतम हुआ जयकारा ,
क्या बोला था बख़्तरबंद उतार दोगे
किसान होकर ऐसी ज़बान बोलते हो
शर्म नही आती तुम्हें रत्तीभर भी
खुद को किसान किस मुँह से कहते हो ?
एक बात तो अच्छे से जान लो तुम
वो अपनी जनता के रक्षक है
अपने लोगों की रक्षा में
हर तरह से सक्षम हैं ,
नारा था जय जवान – जय किसान
जवान तो जय हैं अब भी
जिन्होंने तिरंगे को फेंका ज़मी पर
उनको जय किसान कह सकता है कोई भी ?
देशद्रोह कहते हैं इसको
सजा तो इसकी मिलना ही है
तिरगें के आगे हर एक को
नतमस्तक होना ही है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 28/01/2021 )