आंगन
जब जन्मे तो माँ था लब पर, माँ के आँचल का साया था।
पिता प्रेम का आभाष हुआ, जब पिता ने स्नेह बरसाया था।
बच्चे से कब बड़े हुए, कब जिम्मेदारी का बेड़ा थाम लिया।
लड़खड़ा कर गिरते – उठते, बस मात-पिता को याद किया।
माता जैसा की आस किया, माता की ममता को याद किया।
पिता स्नेह की मर्यादा का, अभिनन्दन और सम्मान किया।
मानो जैसे घर मेरा एक, वट वृक्ष सा तना खड़ा।
पिता स्नेह और त्याग धरा में, भूगर्भित सा वहीं पड़ा।
मन में आता है माता, दुनिया में अकेले कहाँ छोड़ गई।
पिता प्रेम की शीतल छाया, तो मुख सा मानो मोड़ गई।
हुआ अकेला दुनिया में तो, दर्द का मानो दंश न था ।
दर्द भरा था हृदय में मेरे, अंतिम पलों मां तेरे मैं पास न था
हुआ बड़ा मैं दुनिया में पर, माता तेरा मैं बालक हूँ।
बच्चों का मैं पालक हूँ पर, पापा मैं तेरा बालक हूँ।
जीवन में उद्गार किया है, पापा जो तुमसे सीखा है।
आदर्श श्रोत और प्रेरणाश्रोत, पापा तुमको ही देखा है।
माता तुमने जो त्याग किया, न तेरे कोई सरीखा है।
पापा तुमने जो बलिदान दिया, तुमसा न मैंने देखा है
तुमने कर्तव्य निभाया अपना, मुझको इस लायक बनाया ।
मुक्त हुए जिम्मेदारी से, अपना सर्वस्व लुटाया।
एक मौका तो देते मुझको, अपना फर्ज निभाने को।
आपका मैं ऋणी बहुत हूँ, मौका देते कर्ज चुकाने को।
एक मौका तो देते कर्ज चुकाने को………