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30 Jun 2018 · 1 min read

आंख से ही इशारा करो

जब तुम्हारी गली से सुबह -शाम निकलूं

मुझे एक बार नजरें उठाकर निहारा करो

***

तुम्हारे बोलने पर पहरा पर पहरा लगा है

बोलकर न सही आंख से ही इशारा करो

***
सड़क की मोड़ पर जब भी खड़ा मैं रहूं

दौड़कर मेरे पीछे से आकर पुकारा करो

***
पूरा आकाश पूर्णिमा के चांद से घिरा हो

कुछ लम्हें छत पे भी आकर गुजारा करो

***

रहा तन मन तुम्हारा तो सदा से सुगंधित

इसमें कुछ मिट्टी की महक मिलाया करो

***

साफ-सुथरा रहा मैं तो दरपणों की तरह

सामने इसके कभी-कभी इठलाया करो

***

प्यार से जिंदगी जीना तो एक इकरार है

सत्य यह तथ्य किसी से न छिपाया करो

***

जिंदगी का फलसफा जब समझ ही गए

इसको हंस-हंस कर सबको बताया करो

***

टूटना दूर रहना बिखरना अब तक हुआ

आज से मिलने का कोई तो बहाना करो

***

दिन चार की जिंदगी न समय जाया करो

कुछ परायों को भी हृदय से लगाया करो

***

– रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’

Language: Hindi
1 Like · 217 Views
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