आंख नम है इसलिए चुरा रहा हूं मैं
आंख नम है इसलिए चुरा रहा हूं मैं
ये बात नही है के शर्मा रहा हूं मैं
मुसलसल कई दिनों से उन्हें एक गुलाब देता हूं
पत्थर पर लकीर बना रहा हूं मैं
कांच के टूटे तोहफ़े को फिर तोड़ रहा हूं
अपने जख्मों पर नमक लगा रहा हूं मैं
मैने सोचा था उनके दिल को मोहब्बत से भर दूंगा
सदा के लिए ये चिराग बुझा रहा हूं मैं
शक के दायरे में मेरा आना लाज़मी ही नहीं
कोई बात ही नहीं जिसे छुपा रहा हूं मैं
तनहा होना बड़ा सुकून देता है दिल को
ये बात अपने तजुरबे से बता रहा हूं मैं