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1 Apr 2021 · 1 min read

आंख नम है इसलिए चुरा रहा हूं मैं

आंख नम है इसलिए चुरा रहा हूं मैं
ये बात नही है के शर्मा रहा हूं मैं

मुसलसल कई दिनों से उन्हें एक गुलाब देता हूं
पत्थर पर लकीर बना रहा हूं मैं

कांच के टूटे तोहफ़े को फिर तोड़ रहा हूं
अपने जख्मों पर नमक लगा रहा हूं मैं

मैने सोचा था उनके दिल को मोहब्बत से भर दूंगा
सदा के लिए ये चिराग बुझा रहा हूं मैं

शक के दायरे में मेरा आना लाज़मी ही नहीं
कोई बात ही नहीं जिसे छुपा रहा हूं मैं

तनहा होना बड़ा सुकून देता है दिल को
ये बात अपने तजुरबे से बता रहा हूं मैं

1 Like · 2 Comments · 394 Views
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