आंख तेरी मेरी भर आई
मैं न समझा दर्द किसी का, तुम न समझे पीर पराई
अपने-अपने दुख को लेकर आंख तेरी मेरी भर आई ।
चंचल चंदा का चकोर चित सदा रहा पूनम का प्यासा
युगों-युगों से सहती आई विरह अमावस की तरुणाई ।
मरुभूमि की जलन जलाशय का आभास दिलाती मृग को
तृषित कामना के सागर से कब किसकी तृष्णा बुझ पाई ।
मेरे प्रिय का दिया हुआ तम सबसे प्रियतम निधि है मेरी
खिली धूप सा मुस्काया मैं जब सुधि की बदली कजराई।
लाख कहा समझाया शपथ दी व्यक्त न करना पीड़ा मन की
सुन कर जग ने कथा बना दी क्यों नैनों ने व्यथा सुनाई ।