आंख की ओट में
ठोकरों को नया रोज़ पत्थर मिला
पूजने को नहीं एक शंकर मिला
दर्द का इक जख़ीरा भी अंदर मिला।
आँख की ओट में एक समंदर मिला।
सर झुका मेरा जब भी किसी से मिली
जो मिला मुझको मुझसे तो बेहतर मिला
तुम खुदा थे कोई ना ही मैं इक खुदा
पर तुम्हें मुझमें तुममें क्यों अंतर मिला
जब कसौटी पे रिश्तों को तौला गया।
मूक-एकाकी-बेबस फकत घर मिला।
जो तुम्हें बाँध दे इस मेरे प्यार से
क्यों मुझे आज तक ना वो मंतर मिला
अपनी रौनक जिन्हें उम्र भर समझे हम
पास झाँके तो खाली आडंबर मिला
छलछलाया मगर फिर ना बहने दिया
इक महल कड़ुवे घूँटों का अंदर मिला।
कोशिशेँ की बहुत पर डुबो ना सका
जब ‘लहर’ से कभी भी समंदर मिला
रश्मि लहर
लखनऊ