आंखों से दूर जाना
आंखों से दूर जाना सपनों में आना हो गया l
अपनी ही तस्वीर में चेहरा पुराना हो गया ll
उस पुराने पेड़ के नीचे कभी मिलते जहां l
अब तो अपना रात दिन वो आशियाना हो गया ll
टूट कर के चाहना भी एक सजा ही है यहां l
हीर-रांझा का फसाना तो पुराना हो गया ll
आग का दरिया सुना था प्यार होता है यहां l
अब तो अपना रोज का ही आना-जाना हो गया ll
यह ‘सलिल’ तेरा मुक़द्दर खींचकर लाया जहां l
दूर जाए तो भी कैसे तू जनाजा हो गया ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ll