आंखों से अश्क बह चले
आंखों से अश्क बह चले तो यूं छुपा लिए
पलकों को बंद कर लिया और मुस्कुरा दिए
जब भी वफ़ा के नाम पर मन में उठे सवाल
जब भी तुम्हें भुलाने का आया कोई ख़याल
दिल ने तड़प के ये कहा ऐसा न कीजिए
पलकों को बंद कर लिया…
कैसे हैं इम्तिहान ये उल्फ़त के नाम पर
तुमने भी ला दिया मुझे कैसे मुकाम पर
काली घनी है रात और बुझते हुए दिए
पलकों को बंद कर लिया…
रहने दे इश्क़ के अभी थोड़े बहुत भरम
मुझको ख़ुशी नहीं मिली इसका नहीं है ग़म
उसको ख़ुशी मिले मगर जिसे सितम किये
पलकों को बंद कर लिया…
— शिवकुमार बिलगरामी