आंखों में तिरी जाना…
आंखों में तिरी जाना कुछ ख्वाब जो पलते है
मजमून लिफाफे का हम खूब समझते है
बारिश का ज़माना है, मौसम भी सुहाना हैं
मिट्टी के मकाँ वाले, बरसात से डरते हैं
गुल कैद है कमरे में पूरा य़ह भरोसा है
खिड़की पे कई भंवरे दिन रात मचलते हैं
कमज़ोर समझते हो, ऐसे तो नहीं हैं हम
हम अम्न के रखवाले इस देश पे मरते हैं
कपड़ों में जो बाज़ू थे, उन सबको कटा डाला
कुछ दोस्त हमारे अब बेचैन से रहते है
मरहम का तिरे अरशद एहसान नहीं लेना
यह जख्म जो दिल के हैं कुछ देर से भरते हैं