आंखों के दपर्ण में
आंखों के दपर्ण में
आंख डालकर तो देखो
मेरे मन की गहराई को
सागर से भी ज्यादा है जो
गहरा है मन
भावनाये तरंगे उठती है
फिर उठकर गिरती है
नाटक के पर्दे के समान
तुम में मुझमें पर्दा हो जाता है
लज्जा से पल्लू को गांठ लगाते हुए
लज्जा से लजाते हए
आंखों के दपर्ण में
आंख डालकर तो देखो
मेरे मन की गहराई को
सागर से भी ज्यादा है जो
समाज की मर्यादा ऐसी है
जिसमें बंधन बहुत से है
उन बंधनों में बाधंकर तो देखो।
नाम-मनमोहन लाल गुप्ता
मोहल्ला-जाब्तागंज, नजीबाबाद, बिजनौर, यूपी
मोबाइल नंबर 9152859828