II जरूरी है II
आंखों की भाषा से आगे,
बढ़ना जरूरी है l
शब्द ना दे साथ फिर भी,
कहना जरूरी है ll
आंखों का क्या खुशी में भी,
आंसू बहाती है l
आंखों के दरिया से आगे,
निकलना जरूरी है ll
हर घड़ी है इम्तहां,
सोना नहीं अब तो l
हो कठिन राहें मगर,
चलना जरूरी है ll
आस है फिर भी,
एक मुलाकात की l
नामुमकिन नहीं कुछ,
बताना जरूरी हैll
संजय सिंह “सलिल ”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l