आंखे
*आँखें ही तो हैं ,जो सुन्दरता को
पढ़ती हैं ,सुन्दर -सुन्दर विचारों को
गढ़ती हैं “
*कवि, लेखकों की आँखें
प्रकृति की सुन्दरता को निहारती हैं
मन मंदिर में पनपते सुन्दर विचारों को
सुन्दर ,प्रेरक कहानियों
कविताओं के रूप में रचती हैं “
“ आँखे बोलती नहीं
फिर भी बहुत कुछ कहती हैं “
“आँखें इंसान को प्राप्त
नायाब तोहफ़ा हैं “
“मैंने अपनी दोनो आँखो को
ख़ूबसूरत देखने की आदत डाली है “
“लोग कहते हैं आँखे सिर्फ़ देखती है
मैं तो कहूँगी “आँखे “पड़ती भी हैं
आँखे ना होती तो सुन्दरता भी ना होती
प्रकृति की सुन्दरता को निहार सुन्दर-सुन्दर
विचार गढ़ती हैं आँखे “
“आँखों की भी भाषा होती है ,
आँखे बोलती हैं , कोई पढ़ने
वाला होना चाहिये “
आँखे सिर्फ़ देखती ही नहीं , बोलती भी है
बस कोई आँखों की भाषा समझने वाला होना चाहिये । “आप जानते हैं आँखे क्या -क्या करती हैं
आँखें देखती हैं , आँखें बोलती हैं , आँखे पढ़तीं हैं आँखे रोती हैं , आँखे हँसती हैं ,आँखे डराती भी हैं
आँखे सपने भी दिखाती हैं ……..
वास्तव में आँखे ना होती तो ,मनुष्य जीवन बेरंग होता ख़ूबसूरत ना होता “