आंकड़े अमीरी-गरीबी के!
एक बार फिर खबर यह आई,
अमीरों की अमीरी बढ़ गई भाई,
गरीबों के बारे में भी बताया,
इनकी संख्या में हो गया इजाफा!
अमीर और अमीर हो गये,
गरीब-गरीब ही नहीं हुए,
अपितु और बढ़ गये,
यानि अमीरों की अमीरी बढ़ी,
गरीबों की संख्या बढ़ी!
यह भी एक नजरिया है,
कहीं असमानता है,
तो कहीं इसमें समानता है,
अमीरों की अमीरी तो बढ़ी,
किन्तु संख्या में वह बढ़ोतरी नहीं दिखी,
जो गरीबों के साथ हुई,
उनकी गरीबी ही नहीं बढ़ी,
अपितु उनकी संख्या भी बढ़ी,
और इतनी बढ़ी कि दो गुनी हो गई!
अमीरों में अमीर होने की प्रतिस्पर्धा है
और गरीबों में गरीब की संख्या बढ़ाने की,
यानि कि हो पड़ोसी मुझ सरीखा,
और अमीरों में हो सके ना कोई मेरे जैसा,
सरकार करे भी तो क्या करे,
अमीरों की सुनें या गरीब की,
दोनों ही उसके दाता हैं,
एक टैक्स से लेकर चन्दा तक अदा करता है,
तो दूजा मत देकर फर्ज चुकाता है!
हां मतदान तो निशुल्क ही होता है,
पर इसमें कुछ खर्च वर्च तो करना होता है,
जबकि कर अदा करना एक अहसान है,
हम कर दाता हैं ,होने की बड़ी पहचान है!
हम कर ही नहीं चन्दा भी देते हैं
वे सिर्फ मतदान करके ही सेखी बघेरते हैं,
एक ओर दूधारी गाय की लात का प्रसाद है,
दूसरी ओर मतदाता,कौन बड़ी बात है,
यह तो उसे देना ही था, दिया,
हमें ही दिया इसका क्या पता,
ऐसे में हमने उसे दोयम समझा तो क्या हुआ,
और अगर समझते भी नहीं तो करते क्या,
उनके लिए क्या क्या नहीं करते हैं,
पलक पांवड़े बिछाए रखते हैं,
मुफ्त राशन घर घर पहुंचा रखा है,
उसे भूखों तो नहीं मरने दिया है,
काम भले ही कम करके दिखाया,
पर अस्सी करोड़ को भोजन कराया,
इतनी कृपा दृष्टि हमने बना रखी है,
हमने यह व्यवस्था करा रखी है!
अमीरों को हम दे ही क्या पाते हैं,
उल्टे उन्ही का कमाया हुआ खाते हैं,
उन्हीं से राजस्व लाते हैं,
उन्हीं से चन्दा जुटाते हैं,
अब थोड़ा बहुत उनके खिलाफ ढिलाई क्या बरती,
तुम्हें क्यों यह बात है खटकी,
क्या उनका कर्ज माफ नहीं करना था,
जिनका माफ नहीं किया, क्या वह रुकें हैं,
वह देश छोड़कर जा चुके हैं,
अब हम क्या कर सकते हैं,
जो अब तक वालों ने किया,
वही अब हम भी करते हैं !!