आँसू
आँसू
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ये जो आँसू हैं ना
इन्हें समझ पाना सचमुच
बहुत ही कठिन है
इनका मनोविज्ञान समझ पाना
पर्वत तोड़कर राह बनाने जैसा है
ये कब धीमे-धीमे आने लगेंगे
आँखों के कोर से बह निकलेंगे
कब सागर के लहरों की तरह
छलछला जाएँगे
कोई बता नहीं सकता
ये आँसू खुशी या गम के
बंधन में नहीं बंधते
ये परे हैं किसी भी बंधन के जकड़न से
इन पर जाति,धर्म,सम्प्रदाय की
कोई बंदिश नहीं
बस बह निकलते हैं
अपने स्वामी को
शांति प्रदान करने के लिए
एक ऐसी शांति
जिस पर हर्ष या विषाद का
कोई प्रभाव नहीं पड़ता
आँसू बहुत शक्तिशाली हैं
इनका मनोविज्ञान
कोई भी नहीं पढ़ सकता।
–अनिल कुमार मिश्र,राँची,झारखंड,भारत