आँसू कोई आंख से आज छलक आया है
आँसू कोई आंख से आज छलक आया है।
आज “सुधीरा” लिखते-लिखते भर आया है।
ग़ैरों की तो ख़बर नहीं, दिल तोड़ के जाता अपना ही
जिस से है उम्मीद बड़ी, उसका आख़िर में ठगना ही।
हमने पूछी इसकी वजह, वो मुस्काया है
आज “सुधीरा” लिखते-लिखते भर आया है।
यादों का अंबार लगा है, जागती-सोती आंखों में
दिल को तसल्ली इसी बात की मैं भी तो हूँ लाखों में।
चारों तरफ़ से दर्द की कोई ख़बर लाया है
आज “सुधीरा” लिखते-लिखते भर आया है।
विरह वेदना की चिंगारी फूट पड़ी है
थी अपनी जो, आज वो मुझसे रूठ पड़ी है।
मेरे गीतों का शहज़ादा मर आया है
आज “सुधीरा” लिखते-लिखते भर आया है।
जीवन की राहें पथरीली, कदम-कदम पे ठोकर है
स्वर्ग दिखाई देता केवल, ख़ुद के तन-मन को खो कर है
थका परिंदा लौट के फिर से घर आया है।
आज “सुधीरा” लिखते-लिखते भर आया है।