आँसुओ का नल खुला यूँ छोड़कर
विधा-गजल
बेखबर होने लगे हो आजकल।
चैन से सोने लगे हो आजकल।१
जख्म कुछ गहरा मिला क्या आपको,
हर घड़ी रोने लगे हो आजकल।२
हो गई है पुष्प से क्यों दुश्मनी,
शूल अब बोने लगे हो आजकल।३
आंँसुओं का नल खुला यूँ छोड़कर,
याद सब धोने लगे हो आजकल।४
‘सूर्य’ कुछ उखड़े हुए रहते हो’ तुम,
दिल पे क्या ढोने लगे हो आजकल।५
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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