आँसुओं ने ख़त लिखा
$$ ग़ज़ल $$
देख दिल पर ज़ख्म गहरा हसरतों ने ख़त लिखा ।
आज फिर मुझको मेरी तन्हाइयों ने ख़त लिखा ।
उम्र गुज़री तड़पती यूँ करवटों में रात भर ।
दर्द से हो रूबरू अंगड़ाइयों ने ख़त लिखा ।
दिन तो जैसे -तैसे गुजरा शाम की ख़्वाहिश लिए ।
रात भर आँखों से बहकर आंसुओं ने ख़त लिखा ।
आजकल यादों में चलती हैं तेरी किरदारियाँ ।
देखकर तस्वीर तेरी हरक़तों ने ख़त लिखा ।
दफ़्न है सीने में कितने खार ,खंज़र और ख़ुशबू ।
जिंदगी को लूटकर बर्बादियों ने ख़त लिखा ।
इश्क़ की इस आग़ में तो सिर्फ़ बचता है धुँआँ ।
ज़ख्म खाई रूह की परछाइयों ने ख़त लिखा ।
है जुबां पर नाम रकमिश हो रहे क्यों लफ़्ज़ चुप ।
दिल के कागज़ पे तेरी ख़ामोशियों ने ख़त लिखा ।
– रकमिश सुल्तानपुरी