“आँगन की तुलसी”
मन तुलसी , तन तुलसी
जन जन के घर की तुलसी।
जब जब कविता ने लिया, चौपाई का नाम,
मतलब इसका एक है, तुलसी के प्रभु राम।
रामचरितमानस लिखा, लिखा कथा अभिराम,
चौपाई के तुम शिखर, तुलसी तुम्हे प्रणाम।
सुख समृद्धि, असीम बढ़ाता है,
घर पावन वृंदावन सा लगता है।
पत्ता पत्ता दवा बनकर अड़ता है,
माँ सी दुआयें मुझमे भरता है।
तुलसी एक औरत नही ,प्रतिमूर्ति है सौभाग्य की,
स्नेह माता तुल्य है,यह जननी है अनुराग की।
श्याम सलोना सा रूप तुलसी का ,
हर पत्ता औषधि ,तुलसी का।
बिन तुलसी के पात चढाए,
प्रभु को भोग तो भाये ना।
भक्त हठीले हनुमंत को,
तुलसी अति भाये ,उनके जीवन का अंग है।
वास प्रभु का तुलसी में,
जो संजीवनी सबके लिए।
वरण जिसका करते, स्वंय ईश विष्णु है।
जिस भोजन में मिल जाये,वह प्रसाद बन जाता है।
देवलोक से देवता ,करते दिव्य प्रणाम,
तुलसी का जग में ,सबसे ऊचां है नाम।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज